कहने को है भी क्या

कहने को है भी क्या इश्क़ के फ़साने में
दिल जला कर ही मज़ा आता दिल लगाने में

कोई पूछे हाल ए दिल तू ही बता क्या कहें
गिन रहें हैं आंख भर कितना वक़्त तेरे आने में

यूँ तो रँग भरी महफिलें हैं आस पास
दिलजलों को सुकून थोड़ा आता है वीराने में

अच्छे से सुलग जाए यह आग इश्क़ की जरा
उम्र निकाल दी हमने इस आग को सुलगाने में

जल ही जाए तो भी जश्न ही करेंगे हम
दिल्लगी बड़ी है मुश्किल कहने और निभाने में

चल यूँ कर मेरी जुबान को नाम ही दे अपना
जिन्दगी निकल जाए यूँ ही तुझे बुलाने में

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