श्री गुरु वन्दना
----------*गुरु वन्दना*--------
मानुष तन धारि कै जो करै न गुरु पद- कंज ध्यान ।
वृथा जन्म ताकौ भयौ सो मानुस पशु समान।।
बन्दौ गुरु पद पंकज कीजौ सदा आधार।
जिन्हें सेवत नित्य हृदय माहिं भव सों होय उद्धार।।
श्रीगुरु पद नख की महिमा न शब्द बरण करै कोय।
आपहुँ गुरु समर्थ सदा लिखे शब्द माहिं जोय।।
नित बलिहारी जाइए श्री सद्गुरु के चरणार।
हरि गुरु भेद न राखिये यहि ज्ञान हिय माँहिं धार।।
गुरु नाम सबते बड़ा नित सेवौ पद मकरंद।
गुरु आश्रय में सदा मिलै परम आनंद।।
नाश करै भव तिमिर कौ देवै साँचो ज्ञान।
श्री सद्गुरु पद रेणु सीस धरिये तिलक समान।।
भाव सौं कीजौ प्रातः नमन अर्पित सब अभिमान।
श्री गुरु बचन को आपने हिय धरै वेद समान ।।
सकल अभिमान त्याग कै जो भजन करै गुरु रीत।
साँची कृपा तबहुँ भये जो लागै गुरु चरणी प्रीत।।
रे मन भज गुरु पद पंकज सदा भृमर बनै रहो नित।
गुरु कथन माँहिं रमण करै नित आपनो चित्त।।
कोऊ शब्द न करि सके श्री गुरु महिमा कौ गान।
नित्य प्रीति बढ़ै गुरु चरण सौं राखूँ याहि अभिमान।।
गुरु वचन कौ हिय धर जो करै बचन अनुसार।
गुरु रूप ही प्रगट भ्यै हरि आपहुँ साकार।।
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