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कहानी

आज मेरे लफ़्ज़ भी मेरी कहानी मुक़्क़मल न कर पाएंगे जैसे अधूरी सी है यह ज़िन्दगी भी मेरी बगैर तेरे   उठ रहे हैं बड़े बड़े तूफ़ान आज दिल घर इस समन्द्र में पर मेरे अश्कों का समन्द्र भी मुझे डुबो न सका वादा किया था उसने मुझे इक रोज़ मिलने का  बस उसी इकरार पर यह चंद सांसे हरकतें करती बड़े आज करदो ख़ामोश तुम्ही उठते इन तूफानो को मुझसे मेरी साँसो का बोझ अब नहीं उठाया जाता

पीर की कलम

निर्बल के बल तुम्हीं राम भटकत फिरत ठौर ठौर सब तुम्हरे चरण विश्राम जन्म जन्म पाप कौ बोझा किस विध नाथ उठाऊँ नाम विहीना फिरै जगत बांवरी भजन ध्यान न लगाऊँ हा हा नाथ व्यथा यह मन की तुमको टेर सुनाऊँ  काहे चरणन दूर करो हो एक स्वास नहीं पाऊँ

अग्नि थम न जाये

हाँ बहुत छोटे से पँख हैं मेरे छोटी सी मेरी उड़ान न छु पाऊँ परछाई तुम्हारी अपनी व्यथा का मुझको भान कितनी दूर रहते हो मुझसे कैसे तुम्हारा स्पर्श करूँगी तरस गई यह ऑंखें मेरी कैसे तुम्हारा दर्श करूँगी यही पीड़ा प्राण हरण करे बस सब भांति यह दासी अयोग दरस परस सेवा मिले किस दिन कब आवे यह शुभ संयोग चलो रखो यह अग्नि सुलगती हिय की पीर कहीं जम न जाये न हो अश्रु की बरसातें प्रियतम यह अग्नि कहीं थम न जाये

निर्बल के बल

निर्बल के बल तुम्हीं राम भटकत फिरत ठौर ठौर सब तुम्हरे चरण विश्राम जन्म जन्म पाप कौ बोझा किस विध नाथ उठाऊँ नाम विहीना फिरै जगत बांवरी भजन ध्यान न लगाऊँ हा हा नाथ व्यथा यह मन की तुमको टेर सुनाऊँ  काहे चरणन दूर करो हो एक स्वास नहीं पाऊँ

करत हो ऐसी बतियाँ

काहे करत हो ऐसी बतियाँ और कोई देवी देव न जानू काहे भेजत हो पतियाँ नाम तुम्हारा काहे भुलावो करूँ केलि कौ गान पुनि पुनि काहे भटकावत बांवरी किस विध करे ध्यान हा हा नाथा छुटवाओ सब विरथा भोग जंजाल भजन नाम छुटवावे क्षण भर करो दूर तत्काल

भव रोग

हे हरि हरो भव रोगा कबहुँ छुटे भोग लालसा होवे भजन संजोगा कबहुँ मन की भटकन नासै नाम भजन रस पीवै टेर टेर नाम प्रियाप्रियतम कौ कबहुँ बाँवरी जीवै हरि हरो सब भव रोग भोग सब चरणन लाय बैठावो सेवा कौ कोउ मर्म न जानू नाथा आपहुँ योग बनावो

श्रीहरिवंश बधाई

प्रकटयौ श्रीहरिवंश दिवाकर वंशी रूप कियो टहल महल कौ प्रेम दान दियो जगत करुणाकर मंगल निधि सेवत मंगल जोरि मंगल दिवस कौ मंगल बधाई जयजय श्रीहरिवंश प्रेमनिधि मंगल नाद श्रीवेणु सुहाई