तेरा शहर
*तेरा शहर* बेरँग सी ज़िन्दगी है जो रँग चढ़ा सब उतर गया रहा रेत सा फिसलता लम्हा लम्हा गुज़र गया बड़े रँग हमपर उछले बड़े रँग हम सम्भाले नहीं कोई समेट पाए जो आया सब बिखर गया दो पल ही ज़िन्दगी थी दो पल ही जी लिए हम अब हाथ खाली अपने जो आया सब किधर गया नहीं मुझको इश्क़ नहीं है क्यों वो मानते नहीं हैं बड़ा छोटा रास्ता था लो आया लो सफ़र गया नस नस में क्या भरा है जाने क्या उछल रहा है नहीं कोई नशा बाज़ारी जो चढ़ा फिर उतर गया जाने कैसी है खुमारी जाने कैसी यह कशिश है वो कहाँ सलामत लौटा जो इक बार तेरे शहर गया