कर लेते चोरी
कर लेते चोरी एक यह भी
काश एक चोरी कर लेते
हुई नही न पर
क्योंकि चुराया तो नवनीत जाता है न
जो तुम्हें कोमलता मधुरता स्निग्धता दे
जो रस हो तुम्हारा ही
तुम्हीं से छुटा हुआ
तुम्हारी ही प्रतीक्षा में
तुम्हारा होने को व्याकुल
हाँ मथती है न गोपी
नित नित नव नव रस
तुम्हारे लिए .....
तुम्हारी ही प्रतीक्षा में .....
वही करोगे न चोरी
कोई सुख नहीं मुझमें तुम्हारा
कोई रस नहीं मुझमें तुम्हारा
कोई सेवा नहीं मुझमें तुम्हारी
कोई रँग नहीं मुझमें तुम्हारा
.......
बिखरन सी बस
बुने हुए कुछ ताने बाने
समस्त सुखों की अभाव अवस्था
सब रसों की अभाव अवस्था
मैं क्या दूँ तुमको
और तुम भी क्यों करो चोरी
ठहरो ठहरो
जाँच लो परख लो
लौट जाओ
आज लौट ही जाओ
मत करो चोरी
छिप जाऊँ कहीं छिप जाऊँ....
Comments
Post a Comment