हे दामोदर

हे दामोदर

कैसे बांध सके 
तुम्हें कोई

कोई जप

कोई तप

कोई साधना

नहीं नहीं.....
तुम किसी साधन से नहीं मिलते...

किसी सामर्थ्य से नहीं मिलते...
तुम तो बंधते हो

मिलते हो तो
मात्र प्रेम से....
प्रेम से...

और प्रेम शून्य की क्या गति
अवगुण की खान की क्या गति....
गति मति रति हीन .....

नहीं तुम्हें बांधने की सामर्थ्य नहीं

हे दामोदर !
हे दामोदर !
तुम्हीं बांध लो अपने प्रेम रज्जु से
तुम ही बांध सकते
केवल तुम.....

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