क्यों हम

कितना जलता है यह दिल हमसे पूछो
जल जल भी कोयला न हुए क्यों हम

ज़िंदा रहने का कोई शौक़ ही बाकी न रहा
तिल तिल मरते हुए भी खामोश न हुए क्यों हम

खामोशियों का सिलसिला ही भा रहा था हमको
लफ्ज़ क्यों मिले आज फिरसे लिखे क्यों हम

न बोलो न बोलो इक लफ्ज़ भी भारी है आज
हल्की सी हरक़तों से हल्के ही हुए क्यों हम

दिलजलों को अब कौन मुँह लगाता है साहिब
दिल तो जला ही अबतक न जले क्यों हम

मेरे लिखे हुए सब लफ्ज़ भी मिटा देना तुम
थोड़ा थोड़ा मिटते फिर भी न मिटे क्यों हम


Comments

  1. अति अति सुंदर।

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  2. http://shreekrishna4you.blogspot.com/

    एक बार देख लें। शायद आपके मन को स्पर्श करें।

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