झूमकर आएं हैं
झूम कर आये हैं अब तेरे मयखाने में हम
जाने क्यों सुलगने की तम्मना मुझमें बाक़ी है
एक एक जाम ने दिया है कुछ सुरूर हमको
थोड़ी पीकर बहकने की तम्मना मुझमें बाकी है
यह तपिश इश्क़ की सच बहुत सुकून देती है
थोड़ा थोड़ा सा सुलगने की तम्मना मुझमें बाकी है
दिल से निकली हर आह बड़ी मीठी चाशनी सी लगे
थोड़ा चख ली और चखने की तम्मना मुझमें बाक़ी है
सिमट जाने को अपनी बाहें तो बढ़ाओ इक बारी
बस टूटकर बिखरने की तम्मना मुझमें बाकी है
मुझको महरूम कर दो अब पते से मेरे
तेरी गलियों में निकलने की तम्मना मुझमें बाकी है
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