क्षण क्षण बिरथा कीन्हीं
हरिहौं क्षण क्षण बिरथा कीन्हीं
चँचल चित्त इत उत दौराय बिरथा स्वासा कीन्हीं
हरिहौं हरो मन कौ चंचलता अपने चरणन लावो
पुनि पुनि दौरे जग वीथिन अपनी शरण बैठावो
हरिहौं बाँवरी अति ही पामर कौन भाँति भजन रस भावै
करै विनती दुई करि जोरै नाथा हिय नाम प्रेम उमगावै
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