चोरी हो जाने की

कौन हो तुम
चोर
चोर सिरमौर
नवनीत चोर
चित चोर
चुरा लेते हो न चित
मनहर.... कर लेते हो मन का हरण
और चुराने के बाद शेष क्या रहता है
जो चोरी हुआ वो तो चला जाता है न
अपना रहता ही नहीं
मन को चुराने वाले तो तुम हो न
फिर 
मैं क्यों शेष रही
क्या तुम चुरा भी न पाए मेरा मन
नहीं नहीं 
तुम नहीं चुरा पाए
फिर चितचोर कैसे.... 
मनहरण कैसे ....
पुनः प्रयास करो न
चुराया था तो पूरा ही चुरा लेते
अब भीतर व्याकुलता क्यों है
अपना ही शेष न रखने की
चोरी ही हो जाने की
तुम्हारी हो जाने की....

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