शरणागत कौ प्रतिपार
हरिहौं कूड़ सब ब्यौपार।
छांड भजन फिरै जगति बाँवरी बिरथा किये दिन चार।।
भोग वासना कल्मष भारी हरि दीन्हीं फिरै बिसार।
नेह जगत कौ साँचो मानैं भूली जीवन कौ सार।।
हा हा नाथा पकरि कर साधौ ऐसौ बुरो ब्यौहार।
अपनौ बल न राखै बाँवरी तुम शरणागत कौ प्रतिपार।।
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