फिरसे आज अश्कों का
फिरसे आज अश्कों का सैलाब आया है
न बहो न बहो जाने कितना इन्हें मनाया है
एक एक कतरा अश्कों का दर्द देता है उनको
दिल भी बेबस सा हुआ न कुछ कर पाया है
फिरसे आज .....
बड़े बेबस से रहे हम खुद पर नहीं काबू जैसे
रँग अपना नहीं बस कोई और ही रँग छाया है
फिरसे आज......
कर करके वादे अब तलक बहुत तोड़े हैं हमने
थामते थामते अश्कों को कलम ने गाया है
फिरसे आज ......
अब खुद से ही छिप जाने की ख्वाहिश बाकी है
जो ना पास था पास कभी मुद्दत से यूँ दिखाया है
फिरसे आज.....
चलो खामोश करदो मुझको और यह कलम मेरी
मेरी ही बेवफ़ाइओं का ज़िक्र अब तलक गाया है
फिरसे आज.....
देखो अब जुबाँ पर तेरा नाम भी नहीं आता है
जो तुमको खोया फिर इस जहाँ में क्या पाया है
फिरसे आज.....
Comments
Post a Comment