पिय बिन बौराई
सखी री पिय बिन मैं बौराई
खान पान कछु नाँहिं सुहावै न भावै लोक लोकाई
अम्बवा की डारी कोयलिया कूके
बिरहन कौ हिय पुनि पुनि हूके
आयो न कोऊ सन्देस पिया कौ बैठी आस लगाई
सखी री पिय बिन मैं बौराई
बिरहन कौ हिय ताप जरावै
कौन भाँति कछु हिय सुहावै
अग्न तपावै प्रेम की क्षण क्षण काहे नेहा लगाई
सखी री पिय बिन मैं बौराई
निशदिन बहे सखी मोर नयना
काहू सौं अब कछु न कहना
पिय नाम की माला फेरत निशदिन नीर बहाई
सखी री पिय बिन मैं बौराई
ना जानी स्वाद प्रेम कौ खारी
स्वास स्वास बनी पिय बिन भारी
ना जानती जेई रँग नेह कौ अँसुवन की अधिकाई
सखी री पिय बिन मैं बौराई
हाय बाँवरी की सुधि न लीन्हीं
काहे बाँवरी फिर बाँवरी कीन्हीं
पहले प्रेम की कीन्हीं बाता काहे रीति भुलाई
सखी री पिय बिन मैं बौराई
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