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यूँ तो सुकून

यूँ तो सुकून भी मुझे किराये के मकां सा है  जलता है कुछ भीतर भीतर आँखों में धुआं सा है ऊँगली पकड़ के साथ भी तुमने ही चलाया था  पीछे से चल रही अपनी परछाई सा बनाया था  क्यों मानते हो अब मेरा रस्ता अब जुदा सा है  यूँ तो सुकून...... यह जिंदगी कभी कभी जली ताप के भार सी  कभी बरसती आँख यह कभी रूह पर बौछार सी  बहता है कुछ कभी कभी भीतर दबा सा है  यूँ तो सुकून...... क्यों जगाते हो सोई कलम क्यों आज कुछ भरा हुआ  मुद्द्त से सूखता जख्म क्यों आज फिर हरा हुआ  यह दर्द तो पुराना था क्यों आज कुछ नयां सा है  यूँ तो सुकून...... हर नई आह पर चलो वाह वाह कर लेते हैं  दवात ए इश्क़ में चलो कुछ स्याही भर लेते हैं  इश्क़ का सैलाब कब आँखों में थमा सा है  यूँ तो सुकून भी मुझे किराये के मकां सा है  जलता है कुछ भीतर भीतर आँखों में धुआं सा है

बुरे हम

हरिहों बुरे हम पसु समाना। भोग विषय में धंसे बुरे हम जीवन निद्रा भोग अरु खाना। भजन हीन कूकर सम जीवन भजन बिना कैसे होय निदाना। बाँवरी जन्म जन्म सौँ खोटी सीखी केवल बात बनाना।।

चोरी हो जाने की

कौन हो तुम चोर चोर सिरमौर नवनीत चोर चित चोर चुरा लेते हो न चित मनहर.... कर लेते हो मन का हरण और चुराने के बाद शेष क्या रहता है जो चोरी हुआ वो तो चला जाता है न अपना रहता ही नहीं मन को चुराने वाले तो तुम हो न फिर  मैं क्यों शेष रही क्या तुम चुरा भी न पाए मेरा मन नहीं नहीं  तुम नहीं चुरा पाए फिर चितचोर कैसे....  मनहरण कैसे .... पुनः प्रयास करो न चुराया था तो पूरा ही चुरा लेते अब भीतर व्याकुलता क्यों है अपना ही शेष न रखने की चोरी ही हो जाने की तुम्हारी हो जाने की....