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Showing posts from April, 2022

इक तपिश

इक तपिश इक सुलगन सी बनी रहे तुम बिन हाँ इन साँसों का चलना भी भार हो नहीं आ रही न कोई पुकार नहीं उठ रही न कोई हूक बिना तुम्हें पुकारे निकल रहा जीवन हे प्राण हे रमण बिखरी सी मैं जाने कब से जाने कब तक सिमट न पा रही अब समेट लो बस समेट लो अब चेतना की यह बिखरन बस सिमट जाए  तुम तक ही गीले से रहें यह नैन बहता सा लावा  भीतर उछलता सा कुछ अधूरा सा कुछ तलाश कुछ जो पूरी न हुई जिसे भूले हुए भी  जाने जन्मों बीत गए छूटी थी न कहीं से बिखरी थी न कहीं से जान गई अब तुमसे हाँ तुमसे बस प्राण प्राण हे प्राण रमण अब न छोड़ना खींच रहे न बस पूरा सा खींच लो पूरे से तुम अधूरी सी मैं.....

एक पाषाण

पाषाण हाँ पाषाण सुप्त कई जन्मों से पाषाण सम जन्म जन्म की जड़ता इतनी गहरी खाई पार न करते बने बल सामर्थ्य  न न  बलहीन सामर्थ्यहीन पूर्णतः वही उठा लिए इस पाषाण को नित्य तराशने को जाने क्या बने तराशने पर वही जानें जो उठा लिए क्षण क्षण कुछ तराशना फिर सहलाना  पर पाषाण अभी पाषाण ही सुप्त पूर्ववत जाने कब ऐसी चोट पड़े कि भीतर से कुछ फूट पड़े जन्म जन्म से भीतर ही भीतर सुप्त नहीं जाग्रत है जिसकी मचलन है भीतर ही  बाहर केवल सुप्त एक पाषाण

ललित किशोरी ललित किशोर

ललितकिशोरी ललितकिशोर जयजय ललित वृन्दावन धाम नवलकिशोरी नवलकिशोर जयजय नवल वृन्दावन धाम रसिककिशोरी रसिककिशोर जयजय रसालय वृन्दावन धाम सुरंगकिशोरी सुरंगकिशोर जयजय  सुरंग वृन्दावन धाम मधुरकिशोरी मधुरकिशोर जयजय मधुरालय वृन्दावन धाम दुल्हिनीकिशोरी दुल्हुकिशोर जयजय रसालय वृन्दावन धाम नित्यकिशोरी नित्यकिशोर जयजय नित्यरस सदन वृन्दावन धाम पुलकितकिशोरी पुलकितकिशोर जयजय पुलकित वृन्दावन धाम सुरभितकिशोरी सुरभितकिशोर जयजय सुरभालय वृन्दावन धाम पुहुपितकिशोरी पुहुपकिशोर जयजय पुहुपित वृन्दावन धाम प्राणकिशोरी प्राणकिशोर जयजय प्राणधन वृन्दावन धाम