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ललित विलास

जयजय ललित रसजोरि की ललित निहारन ....कैसी अद्भुत रसपगी रसमसी जोरि है री सखी ! दोऊ रसीले रसिया ....इनके अंग अंग में अनन्त अनंग विलास भरे री..... रसीले कौतुक .... रसीली चितवन ... रसीली निहारन .... दिवा रात्रि यह रसीली जोरि रस सिन्धु में ही अवगाहन करती रहती है..... दोऊ बिहारी हैं री यह .... बिहार में भरे .... इनका हृदय उस रस सागर की मीन की भाँति अतृप्त रहवै.... सदा सिन्धु में डूबे रहवै कौ व्याकुल....  निहार री ललित दासी .... ललित नेत्रंन की ललित कोर सौं निहार री ..... निहार निहार के सुख लेय री....और और ललिताई गह्वराई की आशीष देय री इस ललित बिहारिनि जोरि कौ.....यह परस्पर अंस भुज मिलाय मिलाय मिले रह्वैं री..... अपने हृदय रुपी ललित सेज पर इन्हें पौढ़ाए राखो री.... इनका यह विलास ही तो तुम्हारे प्राण हैं..... रसमई बिहारी जोरि कौ ललित बिहार री..... चिरजीवे अद्भुत यह जोरि..... इनकी आरती उतार लेय री.... और और मधुराई बढ़ती रहे.... ललित सुभग सेज ...ललित क्रीड़ा ....ललित श्रृंगार ..... यही गीत गाती रहो री ..... श्रीललिते श्रीललिते श्रीललिते ..... यही नाम तो इनके ललित विलासों का सम्पुट है री .... बिह...

अधरं मधुरं

अधरं मधुरं .....मधुर मधुर .... इतनी मधुरता भरी इन अधरों में ...बहा लिए जा रही यह वेणु ... रव रव मधुर मधुर ....  नयनं मधुरं.... क्या भरा है इन नयनों में .... कहाँ से ला रहे इतनी मधुरता ... अरे भीतर ही समेटे बैठे हो .... मत खोलो इन बड़े बड़े नेत्रों को .... मधुराधिपति ... मधुराधिपति .... वचनं मधुरं ... किसे गा रहे हो .... मधुरता को .... भीतर वही तो है ... मधुराधिपति ...  वचनं मधुरं .. भरे भरे ... झार रहे मधुरताओं को.... चलना भी मधुर मधुर.... यह लचकन ... यह ठुमकन ...  तुम्हारी रेणु भी अति मधुर है .... न होती मधुरता तो क्यों समस्त प्रेमी अपने मस्तक का श्रृंगार बनाते .... ओह .. जिसे स्पर्श करते मधुर मधुर ही करते न तुम ... नृत्यं मधुरं .... मधुरता में ही लासित होकर ऐसी ऐसी मधुर मुद्राएँ हे त्रिभंग लला.... मधुराधिपति .... मधुराधिपति..... यह मस्तक पर मधुर मधुर तिलक ... अहा ... यह पीताम्बरी की मधुर कसन ...   रमणम  मधुरं ....रमणम मधुरं ..... मधुरताओं में ही रमण करते हो ... दृष्टमं मधुरं .... जान गई मैं कहाँ निहार रहे हो .... किसे निहार रहे हो .... कालिन्दी का यह मधुर स...