क्यों हम
कितना जलता है यह दिल हमसे पूछो जल जल भी कोयला न हुए क्यों हम ज़िंदा रहने का कोई शौक़ ही बाकी न रहा तिल तिल मरते हुए भी खामोश न हुए क्यों हम खामोशियों का सिलसिला ही भा रहा था हमको लफ्ज़ क्यों मिले आज फिरसे लिखे क्यों हम न बोलो न बोलो इक लफ्ज़ भी भारी है आज हल्की सी हरक़तों से हल्के ही हुए क्यों हम दिलजलों को अब कौन मुँह लगाता है साहिब दिल तो जला ही अबतक न जले क्यों हम मेरे लिखे हुए सब लफ्ज़ भी मिटा देना तुम थोड़ा थोड़ा मिटते फिर भी न मिटे क्यों हम