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Showing posts from March, 2021

क्यों हम

कितना जलता है यह दिल हमसे पूछो जल जल भी कोयला न हुए क्यों हम ज़िंदा रहने का कोई शौक़ ही बाकी न रहा तिल तिल मरते हुए भी खामोश न हुए क्यों हम खामोशियों का सिलसिला ही भा रहा था हमको लफ्ज़ क्यों मिले आज फिरसे लिखे क्यों हम न बोलो न बोलो इक लफ्ज़ भी भारी है आज हल्की सी हरक़तों से हल्के ही हुए क्यों हम दिलजलों को अब कौन मुँह लगाता है साहिब दिल तो जला ही अबतक न जले क्यों हम मेरे लिखे हुए सब लफ्ज़ भी मिटा देना तुम थोड़ा थोड़ा मिटते फिर भी न मिटे क्यों हम

कसूर मेरी नज़र का

सब कसूर मेरी नज़र का ही.... क्यों  तुम्हें निहारती नहीं क्यों  तुम्हें पुकारती नहीं क्यों  इनकी तलाश कुछ और ही क्यों इनका अंदाज कुछ और ही सब कसूर मेरी नज़र का ही..... क्यों  इन्हें कुछ और लुभा रहा क्यों इन्हें कुछ और बुला रहा क्यों इनमें कुछ और समा रहा क्यों इनका अंदाज़ कुछ और ही सब कसूर मेरी नज़र का ही..... क्यों मुझसे कुछ मेरा छूटता नहीं क्यों हर झूठा रिश्ता टूटता नहीं क्यों इस रूह को तेरी तलब नहीं इनका अंदाज कुछ और ही सब कसूर मेरी नज़र का ही....