बस नहीं चलता न कहीं अपना न वो मानते न यह दिल मानता जाने क्यों आज फिर से प्यास रह गई यह खामोशी ही हमको और प्यासा कर गई लिख न पाई कलम हाल ए दिल मेरा लफ़्ज़ों में बयाँ कैसे होगी दिल्लगी चलो ख़ामोशी ही सुन लो दिल की अब सुना है ख़ामोशी की बात गहरी होती है जाने क्यों अदाएँ तुम्हारी मुझमें उछलती रही मैं न रही बाकी तुम ही तुम से खेलते रहे सच कहूँ यह तड़प मुझमें कभी न थी तेरी ही मोहबत के जायके मिले मुझे देखते ही भर आती है नज़र मेरी जाने कैसे नज़रों में भरूँ उनको