यह आग सुलगती जाती है
साँसों से आता जाता सा बस नाम तुम्हारा सुनती हूँ तुम गुलशन हो और मैं उसमें यह फूल इक इक चुनती हूँ रुक जाए यह पल पल भर मैं साँसों में तुमको भर लूँ यूँ रोम रोम में घुल जाओ मैं तुमको ही अब मैं कर लूँ न मैं बाकी बस तुम मुझमें ऐसे रग रग सी मचलती है हर धड़कन ही बस नाम तेरा गा गा कर कितना उछलती है पीकर भी जाने क्यों फिर रोम रोम से प्यास जगी आती जाती यह सांसें मेरी बस नाम तेरा ही गाने लगी भर कर तुमको धड़कन धड़कन तेरा इश्क़ ही मुझमें मचल गया क्या जादू तेरे इश्क़ में है तेरे नाम से कुछ कुछ पिघल गया तेरा इश्क़ है मीठा शर्बत सा पीकर क्यों दिल यह भारी है फिर अश्क भरे क्यों आंखों में हा तड़प बड़ी यह खारी है जाने कैसे हो छू जाते बेचैनी बढ़ती जाती है सच मर्ज इश्क़ का बड़ा बुरा यह आग सुलगती जाती है