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तेरा नाम

अपनी ही साँसों में मैं नाम तुम्हारा सुनती हूँ सच यह इश्क़ तुम्हारा मुझमें ही बोलता है घुलता घुलता सा कुछ घुल रहा भीतर भीतर तेरा इश्क़ बढ़ता ही जा रहा नशे की तरह सच है बिना लफ़्ज़ों के भी बातें होती हैं इश्क़ में अपनी ही साँसों में कोई और ही जीता हो जैसे तुम ही इश्क़ हो लफ़्ज़ों का फर्क रहा कहाँ साँसों की सरगम ही मुझमें तुझको खोजती है लफ़्ज़ों से खेलना ही तराना बनता है इश्क़ का एक एक से नाम का पैमाने में मय भरती है जैसे