तुम जानो
तुम जानो ओ रँगरेज कैसे तुम रँगोंगे यह मटकी बार बार रँगी बार बार धुली सच्चे हैं न रँग तुम्हारे कैसे रँगोंगे तुम जानो..... गुलाबों में सजने का शौक है तुमको गुलाबों के साथ काँटे भी होते हैं न छिपे कहीं गुलाब के आसपास निभा सकोगे कांटों से तुम कैसे करोगे तुम जानो...... सुन्दर महलों के बाशिन्दे तुम जर्जर सी यह झोपड़ी मेरी कलुषता कल्मषता के अन्धेरे नहीं झिलमिल कोई उजियारा रह सकोगे तुम जानो...... खुशबुओं की पोटलियां भरे तुम महकते झूमते रँग बिखराते हा यह उड़ती सड़न की बदबू दबी कुचली जन्मों की कलुषता सह सकोगे तुम जानो..... बड़े सयाने तुम चतुर शिरोमणि कहाँ कर लिए प्रेम के सौदे देते देते नहीं थकोगे तुम पर यहाँ देने को कुछ नहीं पास बिगड़ा मेरा मामला तुम जानो...... तुम रहते झूमते मस्ती के देश यहाँ जलता घुलता बहता सा कुछ बुझा बुझा कुछ दबा सिसकता सा खामोशी में भी कुछ कहता तुमसे सुन सकोगे तुम जानो....... वेद शास्त्र स्मृतियाँ सब गाती तुम्हारे यश का गान अपार सुनाते सकल वेद वाणी रिझाते क्या सुनोगे तुम अटपटी सी बतियाँ समझ सकोगे तुम जानो..... बहुत ऊँचा है महल तुम्हारा चींटी सी सब हरकतें मेरी अपने दम से कभी छू न...