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कागज़ के फूलों की

*कागज़ के फूल* कागज़ के फूलों में खुशबुएँ कब कहाँ रहती हैं बनावटी सी ज़िन्दगी कब प्रेम धार बहती हैं एक भी अश्क़ इन आँखों का जब सच्चा नहीं फिर लबों पर इश्क़ की कहानियाँ क्यों रहती हैं कागज़ के फूलों में...... बहुत फरेबी दिल है मेरा धोखे में न आना साहिब तुमको भुला सब झूठ की परछाइयां दिल में रहती हैं कागज़ के फूलों में....... काश कभी थोड़ी सी सुलगन मिलती हमको इश्क़ की सुना है नदियां अश्कों की राह ए इश्क़ में बहती हैं कागज़ के फूलों में....... हाँ बहुत मगरूर है दिल तोड़ो तुम ज़रा इसको मंजिल पर मंजिलें झूठी इमारतों की बनती रहती हैं कागज़ के फूलों में.......  न बुझने वाली कभी अपने इश्क़ की थोड़ी प्यास दो जाने क्यों रूह यह घाट घाट पीती रहती है कागज़ के फूलों में...... इक तम्मना बख्श दो बस चूर चूर हो वज़ूद यह नई नई परतें मैली क्यों दिन दिन चढ़ती रहती हैं कागज़ के फूलों में......